केकड़ी। नानेश पट्टधर, प्रवचन प्रभाकर, संयम सुमेरू जैनाचार्य प्रवर विजयराज महाराज ने कहा कि धर्म की जड़ सदैव हरी रहती है। हर व्यक्ति को अपने जीवन में धर्म अराधना करने का नियम बनाना चाहिए। वे बुधवार को वर्धमान स्थानक में प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि ज्ञान की शुरुआत नवकार से हो, दर्शन की शुरुआत जय जिनेन्द्र से हो, चारित्र की शुरुआत पाप के त्याग से हो, तप की शुरुआत नवकारसी से हो, धर्म की शुरुआत विनय से हो, व्यवहार की शुरुआत मधुर मुस्कान से हो और व्यापार की शुरुआत दान से हो तो कार्य में सफलता मिलना निश्चित है। उन्होंने कहा कि दान ही आगे जाकर वरदान बनता है। दान दिए बिना सोना नहीं। दान देने के बाद रोना नहीं। दान देने का समय खोना नहीं ओर दान देने वाले को रोकना नहीं। इस दौरान उन्होंने उम्र थोड़ी मिली, मगर वो भी घटने लगी, देखते—देखते… भजन सुनाकर उपस्थित श्रावक—श्राविकाओं को भाव—विभोर कर दिया। धर्मसभा में प्रवचन करते हुए संत नवीनप्रभ ने कहा कि व्यक्ति को पाप भीरु होना चाहिए। व्यक्ति सांप से तो डरता है पर पाप से नहीं डरता। पाप का फल भोगना नही चाहता, पर पाप छोड़ने के लिए भी तैयार नहीं होता। हर व्यक्ति को पापों के परिणाम के बारे में सोचकर उनसे बचने का प्रयास करना चाहिए। धर्मसभा का संचालन प्रो. ज्ञानचंद सुराणा ने किया। इस दौरान शांतिलाल विनायका, आनन्द लोढ़ा, रिखबचंद मेड़तवाल, पारसमल बोरदिया, मनोज लोढा, अशोक लोढ़ा समेत कई जने मौजूद रहे। संघ प्रवक्ता सुशील मेड़तवाल ने बताया कि प्रवचन सवेरे 9.15 बजे एवं महामांगलिक दोपहर 3 बजे होगा।