केकड़ी। दिगम्बर जैन आचार्य इन्द्रनन्दी महाराज ने कहा कि भगवान महावीर का शासन रागमय नहीं अपितु वीतरागमय शासन है। वीतरागता बाहर से नहीं आती, उसे अन्दर से जागृत करना पडता है। वीतरागता ही आत्म–धर्म है। यदि हम अपने ऊपर शासन करना सीख जाए, आत्मानुशासित हो जाए तभी वीतराग धर्म, आत्मधर्म व विश्वधर्म बन सकता है। वे सकल दिगम्बर जैन समाज के तत्वावधान में आयोजित आदिनाथ चर्तुविंशति जिन बिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के तीसरे दिन प्रवचन कर रहे थे।
केकड़ी में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के दौरान प्रवचन करते आचार्य इंद्रनंदी महाराज।
उन्होंने कहा कि मोहनीय कर्म कभी भी सुख देने वाला नहीं है। कषाय भाव जीव को कस कर बांध देते है। व्यक्ति को अधर्म एवं पापाचार से बच कर रहना चाहिए। क्योंकि सांसारिक प्राणी को तो क्षणिक दुख ही सहन करने पड़ते है। लेकिन पापाचार व अधर्म करने वाले व्यक्ति को नरक के असंख्यात दुखों को सहन करना पड़ता है। मानव को विनम्र भाव अपनाते हुए धर्म पथ पर अडिग़ रहना चाहिए। इस दौरान मुनि निपूर्णनन्दी महाराज, मुनि क्षमानन्दी महाराज व मुनि निर्भयनन्दी महाराज एवं आर्यिका कमलश्री माताजी, आर्यिका मुक्तिश्री माताजी समेत समस्त मुनि व आर्यिका संघ मौजूद रहा।
प्रवक्ता रमेश जैन ने बताया कि सोमवार रात्रि को तीर्थंकर बालक का जन्मोत्सव मनाया गया। इस दौरान कलाकारों ने तांडव नृत्य प्रस्तुत किया। भगवान को मनोहारी पालने में सर्वप्रथम झुलाने का सौभाग्य प्रेमचन्द, ताराचन्द, महावीर प्रसाद, टीकमचन्द, मोनू जैन रामथला वालों ने लिया। समाज के धनेश जैन ने बताया कि मंगलवार को प्रतिष्ठाचार्य पंडित सुधीर मार्तण्ड केसरियाजी एवं पंडित मनोज कुमार शास्त्री बगरोही के निर्देशन में तप कल्याणक की विविध धार्मिक क्रियाएं हुई। बुधवार को दीक्षा कल्याणक महोत्सव का आयोजन होगा।