केकड़ी (आदित्य न्यूज नेटवर्क) शक्करगढ़ स्थित श्री अमर ज्ञान निरंजनी आश्रम के महामंडलेश्वर आचार्य स्वामी जगदीशपुरी ने कहा कि देवकी यानी जो देवताओं की होकर जीवन जीती है और वासुदेव का अर्थ है जिसमें देव तत्व का वास हो। ऐसे व्यक्ति अगर विपरीत परिस्थितियों की बेड़ियों में भी क्यों न जकड़े हो, भगवान को खोजने के लिए उन्हें कहीं जाना नहीं पड़ता है। बल्कि भगवान स्वयं आकर उसकी सारी बेड़ी-हथकड़ी को काटकर उसे संसार सागर से मुक्त करा दिया करते हैं।
वे गीता भवन में सत्संस्कार सेवा समिति के तत्वावधान में भगतानी परिवार की ओर से आयोजित भागवत कथा में प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हर मनुष्य के जीवन में छह शत्रु हैं, काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ व अहंकार। जब हमारे अंदर के ये छह शत्रु समाप्त हो जाते हैं तो सातवें संतान के रूप में शेष जी जो काल के प्रतीक हैं। वो काल फिर मनुष्य के जीवन में आना भी चाहे तो भगवान अपने योग माया से उस काल का रास्ता बदल देते हैं। तब आठवें संतान के रूप में भगवान श्री कृष्ण का अवतार होता है।
जिसके जीवन में भगवान श्री कृष्ण की भक्ति आ गई तो ऐसा समझना चाहिए कि जीवन सफल हो गया। कथा के दौरान जब वसुदेव जी भगवान श्रीकृष्ण को शिरोधार्य कर पहुंचे तो पूरा पाण्डाल श्री कृष्ण के जयकारों तथा ‘नन्द के आनन्द भयो….जय कन्हैया लाल की’ जय से गूंजायमान हो उठा और श्रद्धालु भाव विभार होकर नाचने लगे। इससे पूर्व कथा के दौरान स्वामी जगदीश पुरी जी महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन करते हुए धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की महता पर प्रकाश डाला।
उन्होंने बताया कि चौरासी लाख योनियां भुगतने के बाद मानव देह की प्राप्ति होती है तथा स्वयं भगवान भी मानव देह को पाने की कामना रखते है। इसलिए इस देह को उपयोग व्यर्थ कामों में ना करके जनकल्याण व ईश्वर भक्ति में समर्पित कर दें। उन्होंने कहा कि कृष्ण जन्म के पूर्व वासुदेव व देवकी जंजीरों में जकड़े हुए थे। परन्तु कृष्ण जन्म के उपरान्त बेड़ियां अपने आप ही खुल गई।
कारागार के पहरेदार सो गये और वासुदेव ने नन्हें से कृष्ण को मां यशोदा के पालने में छोडक़र वापस चले आए। इसी प्रकार ईश्वर की प्राप्ति के पूर्व मनुष्य माया और मोह के जंजाल में फंसा रहता है। परन्तु जब उसे प्रभु की कृपा प्राप्त हो जाती है तो सांसारिक आशक्तियों से मुक्त हो जाता है।
कृष्ण जन्मोत्सव के लिए गीता भवन को आकर्षक ढंग से सजाया गया। इस दौरान ब्रहमचारी महेन्द्र चैतन्य एवं नारायण चैतन्य ने सुमधुर भजनों की रसगंगा बहाई। भजनों की प्रस्तुति के दौरान गीता भवन का वातावरण धर्ममयी हो गया। श्रद्धालुओं ने पुष्पवर्षा कर जन्मोत्सव मनाया। पूरा पाण्डाल जयकारों से गूंज उठा। सुमधुर भजनों की प्रस्तुतियों से भाव-विभोर होकर महिलाओं ने नृत्य किया। भगवान कृष्ण के बाल रूप का दर्शन करने के लिए लोगों में होड़ मच गई। अंत में आयोजक परिवार के भगवान दास, देवन दास, कन्हैयालाल, पुरुषोत्तम, चेतन भगतानी आदि ने आरती की।