केकड़ी। उपखण्ड क्षेत्र के लोगों को ठगी, जालसाजी जैसे मामलों में विशेष रूप से सावधान रहने की जरुरत है। इन दिनों केकड़ी इलाके में ईरानी गैंग के गुर्गे खासे सक्रिय नजर आ रहे है। सोमवार को पुलिसकर्मी बनकर बैग में से एक लाख रुपए पार करने के मामले में भी इसी ईरानी गैंग का नाम सामने आ रहा है। पुलिस उप अधीक्षक खींवसिंह राठौड़ ने बताया कि जिस तरीके से वारदात को अंजाम दिया गया है, उसके अनुसार यह करतूत ईरानी गैंग के सदस्यों द्वारा की गई प्रतीत हो रही है। राठौड़ ने बताया कि चुंकि केकड़ी में इस तरह की कई वारदात सामने आ चुकी है। ऐसे में इस तरह की वारदातों से बचने के लिए जागरुकता व सतर्कता जरुरी है।
पूरे भारत में फैल चुकी है गैंग ईरानी गैंग के सदस्य मूल रूप से ईरान के रहने वाले थे। कई दशक पहले इनके पूर्वज भारत आए थे। इनमे से अधिकतर भोपाल इलाके में बस गए। इन दिनों इनका विस्तार पूरे भारत में हो चुका है। बताते है कि ईरानी गैंग के सदस्य लगातार वारदात करते है। एक स्टेशन पर वारदात करने के बाद वे तत्काल दूसरे शहर के लिए रवाना हो जाते है। ईरानी गैंग के सदस्य ईरानी मोहल्लों में अथवा रेलवे स्टेशन के पास रहते हैं। शुरुआत में ये लोग जेबतराशी करते थे, लेकिन बाद में इन्होंने ईरानी गैंग बना ली।
तरीका—ए—वारदात ईरानी गैंग का अपराध करने का तरीका एकदम अनूठा है। ये किसी भी जगह पर प्रसिद्ध आभूषण बाजार की पहचान करते हैं। ज्वैलर्स के सप्लायर/एजेंट/ग्राहकों के बारे में जानकारी प्राप्त करते है। इसी के साथ इन इलाकों में नकदी लेकर आने—जाने वाले लोगों का पूरा ध्यान रखते है। खुद को सीबीआई अथवा पुलिस का अधिकारी बताते है। अवैध मुद्रा, हथियार, नशीले पदार्थ आदि रखने के नाम पर पीड़ित को सामान की तलाशी के लिए कहते है तथा मौका मिलते ही बैग में रखी नकदी व जेवर आदि को पार कर लेते है।
जाते है जिम, रहते है फिट ईरानी गैंग में पुलिसकर्मियों की तरह दिखने वाले लंबे और गठीले शरीर वाले व्यक्तियों को शामिल किया जाता है। ये आरोपी फिट रहने के लिए जिम जाते है तथा उच्च प्रोटीन आहार लेते है। गैंग के सदस्य पुलिस से बचने के लिए महंगे होटलों में रुकते हैं। चेकिंग के दौरान पुलिस से बचने के लिए गिरोह के सदस्य नई गाड़ी का इस्तेमाल करते हैं। हेलमेट लगा कर चलते है तथा इनके पास गाड़ी के पूरे पेपर रहते हैं। शहर से बाहर जाने से पहले वह बाइक बेच देते हैं। दोबारा लौटने पर नई बाइक खरीदते हैं। पुलिस का मानना है कि एक शहर में ये ज्यादा समय तक नहीं रुकते।
बुजुर्गों को भी बना रहे निशाना इसी के साथ उक्त गैंग के सदस्य सुबह और शाम को वॉक पर निकलने वाले बुजुर्गों के साथ भी लूटपाट की घटनाएं करते है। शुरुआत में गैंग के सदस्य ऐसे बुजुर्गों को चिह्नित करते है तथा एक—दो दिन उन पर नजर रखते हैं। इसके बाद सुनसान जगह देख कर उन्हें रोककर लूट की घटना का डर दिखाते है तथा चेकिंग के नाम पर ज्वैलरी उतरवा लेते हैं। कागज में लपेटने के बहाने बदलकर भाग जाते हैं। पुलिस जैसा हुलिया होने की वजह से लोगों को इन पर शक भी नहीं होता।
शक होने पर अपने ही साथी की करते है चेकिंग बुजुगों को चिह्नित कर घटना को अंजाम देने के लिए गिरोह के सदस्य अलग—अलग बाइकों पर निकलते हैं। इस दौरान दो सदस्य खुद को पुलिसकर्मी बता कर बुजुर्गों को सन्नाटे में रोकते हैं। लूट का डर दिखा कर चेकिंग के नाम पर ज्वैलरी उतारने को कहते हैं। इस दौरान अगर किसी पीड़ित को उन पर शक हो जाता है और वह सवाल-जवाब करने लगता है तो दूसरी बाइक पर बैठे साथी इशारा पाकर उसी रास्ते से निकलते हैं। पीड़ित को विश्वास में लेने के लिए गैंग के सदस्य अपने ही साथी को रोकते है और चेकिंग के नाम पर उसकी ज्वैलरी उतरवा कर कागज में लपेटकर वापस कर देते है। यह देख कर पीड़ित को उनके असली पुलिस वाला होने का विश्वास हो जाता है और वह भी ज्वैलरी उतार देते हैं।
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