Wednesday, January 15, 2025
Home धर्म एवं संस्कृति ईश्वर में अनुरक्ति ही वास्तविक भक्ति है—सतगुरु माता सुदीक्षा

ईश्वर में अनुरक्ति ही वास्तविक भक्ति है—सतगुरु माता सुदीक्षा

केकड़ी (आदित्य न्यूज नेटवर्क) ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति के उपरांत हृदय से जब भक्त और भगवान का नाता जुड़ जाता है, तभी वास्तविक रूप में भक्ति का आरंभ होता है। हमें स्वयं को इसी मार्ग की ओर अग्रसर करना है, जहां भक्त और भगवान का मिलन होता है। भक्ति केवल एक तरफा प्रेम नहीं यह तो ओत- प्रोत वाली अवस्था है, जहां भगवान अपने भक्तों के प्रति अनुराग का भाव प्रकट करते हैं, वहीं भक्त भी अपने हृदय में प्रेमा भक्ति का भाव रखते हैं। केकड़ी ब्रांच मुखी अशोक रंगवानी के अनुसार उक्त उद्गार सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज ने वर्चुअल रूप में आयोजित भक्ति पर्व समागम के अवसर पर उदयपुर सहित विश्व भर के श्रद्धालु भक्तों एवं प्रभु प्रेमी सज्जनों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। इसका लाभ मिशन की वेबसाइट द्वारा सभी भक्तों ने प्राप्त किया। उन्होंने कहा कि जीवन का जो सार तत्व है वह शाश्वत रूप में यह निराकार प्रभु परमात्मा है। इससे जुड़ने के उपरांत जब हम अपना जीवन इस निराकार पर आधारित कर लेते हैं, तो फिर गलती करने की संभावना कम हो जाती है। हमारी भक्ति का आधार यही सत्य है, तब फिर चाहे संस्कृति के रूप में हमारा झुकाव किसी भी और हो, हम सहजता से ही इसी मार्ग की ओर अग्रसर हो सकते हैं। किसी संत की नकल करने के बजाए जब हम पुरातन संतो के जीवन से प्रेरणा लेते हैं तब जीवन में निखार आ जाता है। यदि हम स्वार्थ की पूर्ति के लिए ईश्वर की स्तुति करते हैं, तो वह भक्ति नहीं कहलाती। भक्ति तो हर पल, हर कर्म को करते हुए ईश्वर की याद में जीवन जीने का नाम है; यह एक हमारा स्वभाव बन जाना चाहिए। केकड़ी मीडिया सहायक रामचन्द टहलानी के अनुसार सतगुरु माता जी ने अंत में कहा कि भक्त जहां स्वयं की जिम्मेदारियों को निभाते हुए अपने जीवन को निखारता है, वही हर किसी के सुख-दुख में शामिल होकर यथासंभव उनकी सहायता करते हुए पूरे संसार के लिए खुशियों का कारण बनते हैं। इस संत समागम में देश विदेश से अनेक वक्ताओं ने भक्ति के संबंध में अपने भावों को विचार, गीत एवं कविताओं के माध्यम द्वारा प्रकट किया।

RELATED ARTICLES