Sunday, February 16, 2025
Home धर्म एवं संस्कृति एकल परिवार के कारण घट रही जैनम आबादी, संयुक्त परिवार में होती...

एकल परिवार के कारण घट रही जैनम आबादी, संयुक्त परिवार में होती है सुख, आनन्द व उत्सव की अनुभूति

केकड़ी (आदित्य न्यूज नेटवर्क) दिगम्बर जैन आचार्य शांतिसागर महाराज की परंपरा के षष्ठम पट्टाचार्य, अभिनंदन सागर महाराज के शिष्य एवं प्रखर वक्ता आचार्य अनुभव सागर महाराज ने कहा कि इस कलिकाल में अगर कोई शक्ति है तो वह संगठन में है। बचपन में गुरु शिष्य कि वह कथा सुनी है जो आज भी अत्यंत प्रासंगिक है। गुरु ने शिष्य को तोड़ने के लिए अलग-अलग लकड़ी दी तो वे आसानी से टूट गई, जबकि जब इकट्ठी करके दी तो वह उसे नहीं तोड़ पाया। वास्तविकता में संगठन की शक्ति अकथ्य है। वे बोहरा कॉलोनी स्थित नेमीनाथ मंदिर में प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि व्यक्ति जब संयुक्त परिवार में रहता है तो मात्र थोड़ा सा समझौता करके अनेक सुख, आनंद, उत्सव पा सकता है। एकल परिवारों के कारण आज जैनों की संख्या भी घट रही है, बच्चे मां बाप को बोझ से महसूस होने लगे हैं। स्वार्थी प्रवृत्ति और अहंकार मनुष्य को एकल जीवन की ओर धकेल रहा है। हमने परिवार का अर्थ दादा-दादी चाचा-चाची आदि संबंधों के समूह को भी देखा था। परंतु आज माता-पिता और मात्र उनके बच्चे ही परिवार के प्रेम में शेष बचे हैं।  हर व्यक्ति कहता है कि “आई वांट पीस” वह अगर इन शब्दों को तोड़कर देखें तो समझ आएगी जहां “आई” अर्थात अहंकार है, “वांट” यानी इच्छा है, वहां “पीस” अर्थात शांति संभव ही नहीं है। अहंकार में रावण, कौरव और कंस अपने वंश सहित नष्ट हो गए। इसलिए अगर जीवन में व्यवहारिक रूप से प्रसन्नता की चाह हो तो परिवार के संरक्षण और संवर्धन का प्रयास करना चाहिए।  उन्होंने कहा कि जब एलोपैथी, आयुर्वेदिक, होम्योपैथी, नेचुरोपैथी और कोई भी पैथी काम नहीं करती तब अपनों की “सिम्पैथी” काम करती है।

RELATED ARTICLES