Saturday, January 18, 2025
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जन-जन की आस्था का केन्द्र केकड़ी का प्राचीन ‘चारभुजा’ मंदिर

केकड़ी (नीरज लोढ़ा) यह सत्य है कि आस्था में बड़ी ताकत होती है। मानो तो पत्थर, नहीं तो देवता। कोई निराकार प्रभु की पूजा करता है, तो कोई प्रतिमा में भगवान को विराजमान मानता है। यहां पुरानी केकड़ी स्थित प्राचीन चारभुजा मंदिर भी जन-जन की आस्था का केन्द्र है। कस्बे में होने वाले धार्मिक आयोजनों के लिए निकलने वाली शोभायात्राओं की शुरुआत यहीं से होती है। केकड़ी की जनता शुभ कार्य, व्यापार, व्यवसाय, गृह प्रवेश, शिलान्यास एवं नौकरी ज्वाइन से लेकर प्रतियोगी परीक्षा या कारोबार में सबसे पहले चारभुजानाथ को जरुर नमन करती है। चारभुजा नाथ की प्रतिमा से जुड़े चमत्कारों के अनेक किस्से बड़े-बुजुर्गों की जुबान पर आज भी है। मान्यता है कि इस प्रतिमा में साक्षात प्रभु विराजमान है। इतना सब कुछ होने के बाद भी श्रद्धालुओं के मन में टीस है कि इस मंदिर की प्रतिष्ठा, प्राचीनता व लाखों लोगों की आस्था के बावजूद मंदिर का अपेक्षित विकास नहीं हो सका। गौरवशाली इतिहास को समेटे इस मंदिर का विकास सुनिश्चित करने के लिए इसे पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित करना होगा। तभी इस मंदिर का गौरव और अधिक ऊंचाईयों तक पहुंच सकेगा।

केकड़ी में प्राचीन चारभुजा मंदिर का मुख्यद्वार।

भूगर्भ से निकली प्रतिमा-
प्राचीन दस्तावेजों के अनुसार इस मंदिर की प्रतिष्ठा विक्रम संवत 944 में बसंत पंचमी के दिन हुई थी। यहां प्रतिष्ठित चारभुजा नाथ की प्रतिमा अत्यंत प्राचीन है। प्रतिमा कहां से मिली। इसके बारे में किवंदती है कि राजा मल्हार देव के शासनकाल में उक्त प्रतिमा भूगर्भ से प्रकट हुई थी। बताते है कि खवास व कादेड़ा के मध्य जंगलों में गाएं चराने के दौरान एक गाय सूर्य की तरफ मुंह करके एक स्थान विशेष पर दूध की धार छोड़ती थी। गाय चराने वाले ग्वाले ने यह बात गांव के बड़े बुजुर्गों को बताई। ग्रामवासियों ने उस स्थान पर एकत्रित होकर सामूहिक रूप से प्रार्थना की। इसके बाद स्वयं चारभुजा नाथ ने ग्रामवासियों को स्वप्न में आकर बताया कि उनके प्राकट्य का समय नजदीक आ गया है। ग्रामीणों ने इसकी जानकारी राजा मल्हार देव तक पहुंचाई। राज आज्ञा से उस स्थान को पवित्र कर खुदाई शुरू करवाई गई।

इसी दौरान आकाशवाणी हुई कि खुदाई का कार्य बेहद सावधानी से किया जाए, ताकि देव प्रतिमाओं को किसी प्रकार का नुकसान नहीं हो। खुदाई में वहां स्वत: चार मूर्तियां प्रकट हुई। पहली प्रतिमा गणपति, दूसरी बड़ी प्रतिमा चारभुजा नाथ की, तीसरी प्रतिमा छोटे चारभुजा नाथ की एवं चौथी प्रतिमा शेषजी की निकली। वहां मौजूद अलग-अलग रियासतों के राजाओं ने उन मूर्तियों को ले जाने की जिद की। बातचीत से समाधान नहीं होता देख बुजुर्गों ने देव प्रतिमाओं से प्रार्थना की कि आप जहां विराजित होना चाहते है, वहीं पधारें। इसके बाद चार बैलगाडिय़ां मंगाई गई व एक-एक प्रतिमा को बैलगाडिय़ों में स्थापित कर रवाना कर दिया गया। यह निर्णय किया गया कि जहां ये बैलगाडिय़ों रूकेगी, वहीं इन प्रतिमाओं की स्थापना की जाएगी। पहली बैलगाड़ी जिसमे गणपति की प्रतिमा थी, वह कादेड़ा के समीप गणेश चौकी के समीप जा कर रूकी। दूसरी बैलगाड़ी केकड़ी में बड़े तालाब की पाल जहां देवनारायण भगवान का मंदिर था, वहां आकर रूक गई। बाद में देवनारायण मंदिर को लोढ़ा चौक में स्थापित कर यहां चारभुजा मंदिर का निर्माण कराया गया। तीसरी बैलगाड़ी सावर स्थित गढ़ में जाकर रूकी, जहां चारभुजा नाथ का मंदिर स्थापित किया गया तथा चौथी बैलगाड़ी खवास ग्राम में जाकर रूकी, यहां शेषजी महाराज के मंदिर की स्थापना की गई।

केकड़ी में प्राचीन चारभुजा मंदिर का शिखर।

ट्रस्ट मण्डल के अधीन है मंदिर की समस्त व्यवस्थाएं-
मंदिर की समस्त व्यवस्थाएं तहसीलदार की अध्यक्षता में गठित ट्रस्ट के अधीन है। वहीं मंदिर की पूजा व्यवस्था पुजारियों की देखरेख में होती है। यहां एक पुजारी परिवार ओसरा आने पर सात दिन तक पूजा व्यवस्था संभालता है। पाराशर समाज के परिवार इस मंदिर की पूजा व्यवस्था संभालते है। आमजन का मानना है कि मंदिर का समुचित विकास करने के लिए इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना होगा। इसके लिए जनप्रतिनिधियों सहित आमजन को भी आगे बढ़ कर सहयोग करना होगा।
विद्यालय हटे तो बने बात-
मंदिर परिसर में सत्र 1959 में राजकीय प्राथमिक विद्यालय का संचालन शुरू किया गया, जो बाद में उच्च प्राथमिक विद्यालय में क्रमोन्नत हो गया। मंदिर में बने अधिकतर कमरे स्कूल प्रबंधन के उपयोग में लिए जाने के कारण यहां सेवा पूजा करने वाले पुजारी परिवारों को समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कई बार के निवेदन के बाद भी इस विद्यालय को आज दिन तक अन्यत्र शिफ्ट नहीं किया गया। बताते है कि सर्दी हो या बरसात पुजारी परिवार को रात्रि के समय खुले परिसर में ही सोना पड़ता है। इसके अलावा विद्यालय में अध्ययनरत बच्चों के लिए बने मूत्रालय से भी मंदिर की पवित्रता प्रभावित हो रही है। बताया जाता है कि उक्त विद्यालय के लिए नवीन भवन बनकर तैयार हो चुका है। लेकिन विद्यालय को शिफ्ट करने का कार्य अभी तक नहीं किया गया है।

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