केकड़ी (आदित्य न्यूज नेटवर्क) शाश्वत आनंद की निरोल अवस्था को निरंतर कायम रखने के लिए प्रभु इच्छा को सर्वोपरि मानना होगा। तभी भक्तिमार्ग पर चलते हुए आनंद की अवस्था को प्राप्त किया जा सकता है। यह मनोभाव सत्गुरू माता सुदीक्षा महाराज ने महाराष्ट्र के 55वें वार्षिक निरंकारी संत समागम के समापन पर श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। केकड़ी ब्रान्च मुखी अशोक कुमार रंगवानी के अनुसार सत्गुरू माता के आशीर्वाद के साथ ही इस तीन दिवसीय संत समागम का सफलतापूर्वक समापन हुआ।
समागम का सीधा प्रसारण मुंबई के चेम्बूर स्थित संत निरंकारी सत्संग भवन से मिशन की वेबसाइट एवं साधना टी.वी. चैनल पर किया गया। जिसका आनन्द विश्वभर के लाखों श्रद्धालु भक्तों ने प्राप्त किया। सत्गुरू माता ने आनंद की अवस्था पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जब हम इस निरंकार प्रभु परमात्मा से जुड़ जाते है। तब भक्ति का एक ऐसा रंग हम पर चढ़ता है कि सदैव ही आनंद की अनुभूति प्राप्त होती है। इस आनंद में भक्त इस प्रकार से तल्लीन रहता है कि फिर किसी के बुरे शब्दों या व्यवहार का उस पर कोई प्रभाव ही नहीं पड़ता क्योंकि वह भक्ति द्वारा आनंद की अवस्था को प्राप्त कर चुका होता है।
केकड़ी ब्रांच मीडिया सहायक राम चन्द टहलानी के अनुसार महात्मा गौतम बुद्ध जी के जीवन में घटित एक घटना का वर्णन करते हुए सत्गुरू माता ने कहा कि एक व्यक्ति जब उनके ऊपर थूक कर चला गया, तो उन्होंने अपने शिष्यों को यही कहा कि हमारा इसके साथ कोई पुराना खाता होगा। जो उसने अपना काम किया और शायद यह खाता यहां पर समाप्त हो गया। उस व्यक्ति का ऐसा दुर्व्यवहार भी उनके आनंद एवं मन की शांति को अस्थिर नहीं कर पाया। तो कहने का भाव केवल यही कि हमें भी स्वयं को निरंकार प्रभु के साथ जोड़कर आत्मसात की स्थिति में रहते हुए, सकारात्मक दृष्टिकोण को अपनाना है। इसके लिए दृढ़ विश्वासी संतों का संग एवं सेवा, सुमिरन, सत्संग का आधार लेते हुए प्रतिपल मन से इस निरंकार प्रभु के साथ जुड़ जाना ही भक्ति है जिससे कि आनंद की अवस्था को प्राप्त किया जा सकता है।
समागम के तीसरे दिन का मुख्य आकर्षण एक ‘बहुभाषी कवि सम्मेलन’ रहा जिसका शीर्षक ‘श्रद्धा भक्ति विश्वास रहे, मन में आनंद का वास रहे’ था। इस विषय पर मराठी, हिंदी, पंजाबी, कोंकणी, अहिराणी, भोजपुरी एवं गुजराती आदि भाषाओं के कुल 18 कवियों ने कविताओं के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त किया। इसके अतिरिक्त समागम के तीनों दिन विभिन्न भाषाओं में वक्ताओं द्वारा अपने विचारों का व्याख्यान, गीत, भजन, कविता आदि विधाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। जिसमे अनेकता में एकता का सुंदर दृश्य एवं वसुधैव कुटुम्बकम की अनूठी छवि दर्शायी गयी।