केकड़ी. नीरज जैन ‘लोढ़ा’ (आदित्य न्यूज नेटवर्क) नगर पालिका के क्रियाकलापों एवं बैठकों आदि में महिला पार्षद के पति या रिश्तेदार सक्रिय रूप से भाग नहीं ले सकेंगे। इस संबंध में स्वायत्त शासन विभाग के निदेशक एवं संयुक्त सचिव ह्रदेश कुमार शर्मा ने एक परिपत्र जारी कर नियमों की पालना सुनिश्चित करने के निर्देश दिए है। परिपत्र में बताया गया कि पालिका के क्रियाकलापों एवं बैठकों आदि में महिला जनप्रतिधि के पति अथवा रिश्तेदार सक्रिय रूप से हिस्सा लेते है। लेकिन नियमानुसार यह सही नहीं है। ऐसे में पति अथवा रिश्तेदारों की दखलन्दाजी तत्काल प्रभाव से बंद की जावें। आदेश की सख्ती से पालना नहीं होने पर संबधित अधिकारी अथवा कर्मचारी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।
क्या है वस्तुस्थिति राजस्थान में वास्तविक स्थिति यह है कि महिला जनप्रतिनिधि का 75 फीसदी काम उसका पति, बेटा या ससुर ही करता है। नगर पालिका में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण देकर राज्य सरकारों ने आधी आबादी को पूरी महत्ता दी है। इसके पीछे सोच थी कि यदि महिलाएं लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेगी तो उनकी भागीदारी सुनिनिश्चत होने के साथ ही निर्णय लेने की प्रक्रिया में भी इसका असर होगा। वे जनप्रतिनिधि बनकर पालिका का कामकाज देखेगी। लेकिन इस निर्णय के बावजूद जमीन पर इसका व्यापक असर हुआ हो ऐसा दिखाई नहीं देता। कुछ जगह अपवाद जरूर हैं जहां कामकाज की कमान पूरी तरह महिलाओं के हाथ में ही है। इसके बावजूद ज्यादातर जगहों पर महिलाएं घर का चूल्हा चौका संभाल रही है और पति परमेश्वर जनप्रतिनिधि की भूमिका निभा रहा है। महिलाएं यदा कदा कागजी खानापूर्ती के लिए पालिका की बैठकों में उपस्थित भी होती है, तब भी पति परमेश्वर उनके इर्द गिर्द होते है और उसकी जवाबदेही सिर्फ कागजों पर हस्ताक्षर या अंगूठा लगाने तक ही सीमित होती है।