केकड़ी, 20 अगस्त (आदित्य न्यूज नेटवर्क): दिगम्बर जैन मुनि सुश्रुत सागर महाराज ने कहा कि जीव आत्मा के साथ लगे कर्मों के उदय के कारण नरकगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति और देवगति में घूमता रहता है। कर्मों के फलस्वरूप गति मिलती है, गति से देह मिलती है, देह से स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण ये पांच इंद्रियां मिलती है। वे देवगांव गेट स्थित चन्द्रप्रभु जैन चैत्यालय में प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि यह जीव इंद्रियों के विषयों से राग-द्वेष कषाय करता है और यही राग-द्वेष दुख का कारण है।
विनय व नम्रता से बढ़ता ज्ञान मुनिश्री ने कहा कि ज्ञान की शोभा विनय व नम्रता से ही होती है। ज्ञान व्यक्ति में गुणों की वृद्धि करता है। जीवन में गुणों का विकास अवश्य होना चाहिए। कोई भी पदार्थ, वस्तु उसके गुणों के आधार पर जानी जाती हैं, उसका मूल्यांकन उसी के अनुसार होता है। गुणों का शत्रु अवगुण है। बहुत सारे गुण एक अवगुण के कारण मूल्य विहीन हो जाते हैं। व्यक्ति को जहां से भी गुणों की प्राप्ति हो, अवश्य ही ग्रहण करने चाहिए। प्रवक्ता नरेश जैन ने बताया कि प्रवचन से पहले चित्र अनावरण, दीप प्रज्ज्वलन एवं मुनि सुश्रुत सागर महाराज के पाद प्रक्षालन का लाभ प्रकाशचंद, कैलाशचंद, चंद्रप्रकाश बज परिवार को मिला।
