Wednesday, April 30, 2025
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पोक्सो का झूठा मुकदमा दर्ज कराने पर न्यायालय ने सुनाई मां को सजा, न्यायालय ने कहा— पुत्री का सहारा लेकर निर्दोष को फंसाने से समाज में गया गलत संदेश

केकड़ी, 05 अगस्त (आदित्य न्यूज नेटवर्क): पोक्सो कोर्ट संख्या 01 अजमेर के विशिष्ठ न्यायाधीश बन्नालाल जाट ने नाबालिग पुत्री के माध्यम से दुष्कर्म का झूठा मुकदमा दर्ज कराने के मामले में पीड़िता की मां (परिवादिया) को 06 माह के कारावास व दस हजार रुपए के अर्थदण्ड से दण्डित करने के आदेश दिए है। प्रकरण के तथ्यों के अनुसार परिवादिया ने गत 11 जुलाई 2021 को केकड़ी शहर थाना पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई कि उसकी पुत्री भेड़ व बकरियां चराने के लिए जंगल मे गई थी। उसके साथ उसकी दादी भी थी। दिन मे लगभग 2 बजे जानवर चरते हुए आगे निकल गए। उनके साथ पीड़िता आगे निकल गई तथा पीड़िता की दादी पीछे रह गई। इसी दौरान दो युवक आए और नाबालिग के साथ बारी बारी से बलात्कार किया। चीख पुकार सुनकर दादी मौके पर पहुंची और एक युवक को पकड़ने का प्रयास किया, जिसमे उसकी टी—शर्ट फट गई। दोनों आरोपी मौके से भागने में सफल रहे।

पीड़िता ने रेप की घटना से किया इंकार पुलिस ने पोक्सो एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर जांच शुरु की। अनुसंधान के दौरान 161 सीआरपीसी के तहत दर्ज बयानों में पीड़िता ने बताया कि मेरे पिताजी पर चोरी का इल्जाम लगा रहे थे। तब मेरी मम्मी और दादी ने आकर रिपोर्ट दर्ज करवा दी। जबकि मेरे साथ कुछ नहीं हुआ। रेप नहीं हुआ। प्रकरण में पीड़िता ने 164 सीआरपीसी में माननीय न्यायालय के समक्ष लेखबद्ध बयानों में भी रेप की घटना को झूठा बताया। अनुसंधान अधिकारी ने परिवादिया को धारा 91 सीआरपीसी का नोटिस देकर घटना के समय पहने हुए कपड़े पेश करने के लिए कहा। जिस पर परिवादिया ने पुत्री के साथ बलात्कार जैसी किसी भी घटना से इंकार कर दिया। चुंकि किसी तरह की घटना नहीं हुई है। ऐसे में कपड़े वगैरह भी नहीं है तथा घटना स्थल का निरीक्षण भी नहीं करवा सकती। प्रकरण मे परिवादिया ने पुलिस उप अधीक्षक के कार्यालय मे उपस्थित होकर एक प्रार्थना पत्र दिनांक पेश कर बताया कि मेरी पुत्री के साथ किसी प्रकार की घटना नही होने से उक्त प्रकरण में कोई कार्यवाही नही चाहती।

पुलिस ​थाना केकड़ी शहर (फाइल फोटो)

पुलिस ने परिवादिया के खिलाफ पेश किया इस्तगासा अनुसंधान अधिकारी द्वारा अनुसंधान के दौरान साक्ष्य व दस्तावेज संकलित करने के उपरान्त प्रकरण को अदम वकु झूठा मानकर माननीय न्यायालय के समक्ष एफ आर प्रस्तुत की गई। जिसे माननीय न्यायालय द्वारा अदम वकु झूठ में स्वीकार कर प्रकरण की पत्रावली पुलिस थाना केकडी शहर को लौटाई। प्रकरण में अनुसंधान अधिकारी द्वारा परिवादिया के विरूद्ध झूठा मुकदमा दर्ज कराने का अपराध मानते हुए पोक्सो एक्ट की धारा 22 में माननीय न्यायालय के समक्ष परिवादिया के खिलाफ इस्तगासा पेश किया। माननीय न्यायालय ने प्रकरण में सुनवाई करते हुए परिवादिया के खिलाफ़ प्रसंज्ञान लेकर परिवादिया को जमानती वारण्ट से तलब किया। माननीय न्यायालय द्वारा परिवादिया पर आरोप विचरीत किया गया। सुनवाई के बाद न्यायायल ने परिवादिया को 06 माह की सजा व दस हजार रूपए के अर्थदण्ड से दण्डित करने के आदेश दिए है।

परिवादिया का कृत्य क्षमा योग्य नहीं प्रकरण में न्यायालय का मत रहा कि परिवादिया द्वारा अपनी नाबालिग पुत्री के माध्यम से प्रकरण दर्ज करवाया और कोर्ट के समक्ष 164 सीआरपीसी के बयानो मे पीड़िता ने उसके साथ किसी प्रकार की कोई घटना नही होना बताया। परिवादिया ने अपनी पुत्री का सहारा लेकर निर्दोष लोगों के विरूद्ध झूठी कार्यवाही की। जिससे समाज, घर व परिवार में गलत संदेश गया। झूठे मुकदमे दर्ज कराने से सही और वास्तविक मुकदमों को भी झूठे मुकदमे के दृष्टिकोण से देखा जा रहा है परिवादिया का उक्त कृत्य क्षमा करने योग्य नही है। ना ही उसके साथ किसी प्रकार की नरमी का रूख अपनाया जा सकता है। इसलिए परिवादिया को झूठा मुकदमा दर्ज कराने व अपनी पुत्री के माध्यम से झूठी गवाही दिलाने व निर्दोष लोगों को झूठे मुकदमे में फंसाने के आरोप में सजा सुनाई जाती है।

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