Site icon Aditya News Network – Kekri News

वीतराग भाव से पूजा करने पर होता पुण्य का संचय, जीवन में संतोष धारण करने पर होती परमसुख की प्राप्ति

केकड़ी: मुनिश्री के पाद प्रक्षालन करते श्रद्धालुगण।

केकड़ी, 12 अगस्त (आदित्य न्यूज नेटवर्क): दिगम्बर जैन मुनि सुश्रुत सागर महाराज ने कहा कि आत्मा का हित चाहने वाले व्यक्तियों को मोह, राग, द्वेष, विषय, कषायों से हमेशा बचना चाहिए। अपनी आत्मा के स्वरूप को समझना चाहिए। वे देवगांव गेट स्थित चन्द्रप्रभु चैत्यालय में वर्षायोग के दौरान प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि देव शास्त्र गुरु की पूजा, भक्ति, आराधना, आलम्बन पुण्य का संचय कराती है। भगवान की शरण शुभोपयोग है। हमें अतिशय क्षेत्रों, सिद्ध क्षेत्रों की वंदना, दर्शन करने चाहिए। वीतरागी भगवान को वीतराग भाव से पूजना चाहिए। हमारा उपयोग संसार की क्रियाओं में, कुतर्कों में, मन के हटाग्रहों में उलझ रहा है, इससे बचना चाहिए। हमारे मन के हटाग्रहों के कारण ही हमारा संसार में परिभ्रमण चल रहा है।

तृष्णा छूटने पर ही होगा कल्याण मुनिश्री ने कहा कि जीवन में संतोष धारण करना चाहिए। जीवन में तृष्णा से पूर्णतया बचना चाहिए। संतोष एवं समता भाव जीवन में सुरक्षा कवच का काम करती है। हमारे जीवन में जो कुछ भी अच्छा-बुरा घटित हो रहा है, वह सब हमारे ही पूर्वोपार्जित कर्मों के उदय के फलस्वरूप ही हो रहा है। यह कर्म का संबंध हमारे साथ अनादिकाल से चला आ रहा है। दिगम्बर जैन समाज एवं वर्षायोग समिति के प्रवक्ता नरेश जैन ने बताया कि मुनिराज के प्रवचन से पहले चित्र अनावरण, दीप प्रज्ज्वलन एवं मुनि सुश्रुत सागर महाराज के पाद प्रक्षालन करने का सौभाग्य प्यार चंद, अभिषेक कुमार, रीतेश कुमार, मनोज कुमार, रिषभ जैन परिवार सावर वालों ने प्राप्त किया।

Exit mobile version