केकड़ी। श्रीमद् भागवत सप्ताह ज्ञानयज्ञ में कथा वक्ता राष्ट्रीय संत महामंडलेश्वर दिव्य मोरारी ने कहा कि जन्म लेने वाली प्रत्येक वस्तु विकास करती है, पर यह विकास ही उस वस्तु को अपने आप विनाश की ओर ले जाता है, जैसे बचपन–जवानी–बुढ़ापा आदि। काल का एक अर्थ है समय, दूसरा मृत्यु अथवा मृत्यु के देवता धर्मराज। समय कभी किसी चीज को एक रूप में नहीं रहने देता, सतत परिवर्तन ही संसार में एक स्थायी प्रक्रिया है। मनुष्य की प्रकृति बाह्यमुखी या अंतर्मुखी होती है। बाह्यमुखी वाले दुनियादारी में ज्यादा ध्यान देते हैं व अंतर्मुखी अध्यात्म में। प्रकृति के अनुसार ही बच्चों का विकास होने देना चाहिए। मनुष्य को व्यक्ति के बाहरी रूप अथवा जाति की अपेक्षा उसके ज्ञान व गुणों में ध्यान देना चाहिए एवं उनकी प्रशंसा करते रहना चाहिए।
उन्होंने कहा कि यह संसार द्वैत की नगरी है, जैसे सुख–दुख, शांति–अशांति, अमीर– गरीब, काला–गोरा ऊंचा–नीचा आदि। इससे ऊपर उठकर अद्वैत, सत्य, भेदभाव रहित स्थिति को प्राप्त करना ही हमारा प्रयत्न होना चाहिए। यह जगत परमात्मा की मौज का खेल, नाटक, लीलारुपी सृष्टि है, इसका अनुभव साधनरत ही कर सकता है। इस दौरान महारास, कंस उद्धार, उद्धव गोपी संवाद, श्री कृष्ण रुक्मणी विवाह आदि का सुुन्दर चित्रण किया गया। रुक्मणि विवाह के दौरान उपस्थित महिलाओं ने भावविभोर होकर नृत्य किया। कथा के दौरान शिवराज बियाणी, रामगोपाल वर्मा, शिवजीराम सोमाणी, बद्रीलाल शर्मा, किशनलाल डसाणियां, कैलास पालीवाल, आनन्दीराम सोमाणी, मुकेश तोषनीवाल, दिनेश वैष्णव सहित कई श्रद्धालु मौजूद रहे।