केकड़ी, 23 जुलाई (आदित्य न्यूज नेटवर्क): दिगम्बर जैन मुनि सुश्रुत सागर महाराज ने कहा कि मनुष्य जीवन भर अधिकाधिक धन संचय करने के लिए कड़ी मेहनत करता है। लेकिन संचित धन सम्पत्ति का सदुपयोग नहीं कर पाता। ऐसा होने पर वह सम्पत्ति पाषाण के समान हो जाती है। वे देवगांव गेट के समीप स्थित चन्द्रप्रभु जैन चैत्यालय में प्रवचन कर रहे थे। उनहोंने कहा कि अतितीव्र धन संपदा से राग के कारण कंजूस व्यक्ति मरने के बाद भी सर्प बनकर सम्पत्ति पर कुंडली मारकर बैठ जाते है। जिससे उसके परिवार के सदस्य भी उस धन सम्पत्ति का उपयोग नहीं कर पाते। कुछ विरले व्यक्ति ही होते है, जो संचित धन को दान पुण्य में लगा कर पुण्य का संचय करते है।
करना चाहिए संसार के बंधन से मुक्त होने का प्रयास उन्होंने कहा कि हमें भी धन सम्पदा का सदुपयोग कर संसार के बंधनों से मुक्त होने का प्रयास करना चाहिए। वर्षायोग समिति के प्रचार संयोजक नरेश जैन ने बताया कि प्रवचन सभा की शुरुआत में महावीर प्रसाद, कैलाश चन्द, रमेश चन्द, शुभम सोनी परिवाद मेवदा वालों ने आचार्य विद्यासागर महाराज एवं आचार्य सुनील सागर महाराज के चित्र का अनावरण किया। दीप प्रज्ज्वलन एवं मुनि सुश्रुत सागर महाराज के पाद प्रक्षालन करने का लाभ भी सोनी परिवार को प्राप्त हुआ। मंगलाचरण गीत बाल ब्रह्मचारी भैया ऋषभ जैन ने प्रस्तुत किया।