केकड़ी (आदित्य न्यूज नेटवर्क) संतों के हृदय में सदैव ही सर्वत्र का भला करने का भाव रहता है एवं उनका परम धर्म मानवता की सेवा करना ही होता है। उक्त उद्गार सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज ने महाराष्ट्र के तीन दिवसीय 55वें वार्षिक निरंकारी संत समागम का विधिवत शुभारंभ करते हुए मानवता के नाम प्रेषित अपने संदेश में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि सभी के प्रति प्रेम, दया, करुणा, सहनशीलता का भाव मन में अपनाएं जिससे कि इस संसार को स्वर्गमयी बनाया जा सके। केकड़ी ब्रांच मुखी अशोक कुमार रंगवानी के अनुसार सदगुरु माता ने कहा कि हमें अच्छे गुणों का आरंभ स्वयं से करते हुए इसका उपयोग अपने घर परिवार, मोहल्ले, शहर, देश एवं समस्त विश्व के लिए करना चाहिए। जिससे कि इस संसार को वास्तविक रूप में दिव्य गुणों एवं कर्मों द्वारा महकाया जा सके। निरंकारी मिशन ने सदैव ही सेवा को परम धर्म माना है। अतः इसी सेवा भाव को अपनाकर मानवता के कल्याण के लिए सेवाएं निभानी है। सदगुरु माता ने कहा कि विश्वास जब तक मन में ना हो तब तक भक्ति संभव नहीं है। अतः हमें क्षणभंगुर रहने वाली वस्तुओं पर विश्वास न करके वास्तविक रूप में स्थाई रहने वाले इस निरंकार पर विश्वास करना चाहिए जिसका अस्तित्व शाश्वत एवं अनंत है। केकड़ी ब्रांच के मीडिया सहायक राम चन्द टहलानी के अनुसार सदगुरु माता ने इसके अतिरिक्त एक अन्य उदाहरण देते हुए कहा कि भक्ति एवं विश्वास के विषय में जब हम परमात्मा से जुड़ जाते हैं तब हर हाल में शुकराने का भाव ही प्रकट करते हैं।प्रार्थना एवं अरदास हमारी भक्ति को परिपक्व बनाती है व जीवन के उतार-चढ़ाव हमारे मन को प्रभावित नहीं करते। हमें इस निरंकार प्रभु की रजा में बगैर शर्तों के समर्पण करना है इस बात को स्पष्ट करते हुए उन्होंने फरमाया कि एक गुरु को उनके शिष्य ने एक उपहार दिया जिसे गुरु ने बहती हुई नदी में प्रवाहित कर दिया। गुरु ने उसे शिक्षा देने के उद्देश्य से समझाया कि यदि तुमने मुझे कुछ दिया तो तुम उसे मुझ पर छोड़ दो कि मैं उसका कैसा प्रयोग करता हूं। इस उदाहरण द्वारा हमें यही शिक्षा मिलती है कि यदि हम अर्पण करते हैं तो उसके उपरांत कुछ भी पाने की अपेक्षा ना हो और यह अवस्था हमारे जीवन में तभी आती है। जब हम अंदर एवं बाहर एक समान हो जाते हैं। वर्चुअल रूप में आयोजित समागम में सभी प्रतिभागियों ने अपने शुभ भाव गीतों, कविताओं एवं विचारों के माध्यम से प्रकट किए। जो अनेकता में एकता का सुंदर चित्रण प्रस्तुत कर रहे थे। उल्लेखनीय है कि संत समागम के अवसर पर सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के कर कमलों द्वारा ‘विश्वास भक्ति आनंद’ समागम स्मारिका का भी विमोचन किया गया। जिसमें मराठी, हिंदी, गुजराती एवं नेपाली भाषाओं में अनुभवी संतो के सारगर्भित लेख सम्मिलित हैं।
सुखी रहने के लिए प्रेम, दया, करूणा व सहनशीलता का भाव अपनाएं…
