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सुपात्र को दान देने से होती है सुखों की प्राप्ति, एक हाथ से दिया हुआ दान हजारों हाथों से लौटता है वापस

केकड़ी: दिगम्बर जैन मुनि सुश्रुत सागर के पाद प्रक्षालन करते पाण्ड्या परिवार के सदस्य।

केकड़ी, 21 जुलाई (आदित्य न्यूज नेटवर्क): दिगम्बर जैन मुनि सुश्रुत सागर महाराज ने कहा कि दूसरों पर दया, करूणा, अनुकम्पा करके जो धन आदि दिया जाता है, वह सामान्य रूप से दान की श्रेणी में आता है। दान आवश्यकता एवं योग्यता को देखकर और देने योग्य वस्तुओं का किया जाता है। वे चन्द्रप्रभु जैन चैत्यालय में प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि शास्त्रों में दान के चार प्रकार बताए गए है। आहारदान, ज्ञानदान, औषधिदान व अभयदान। दान हमेशा सुपात्र को देना चाहिए। रत्नत्रय धारी निर्ग्रन्थ दिगम्बर साधु उत्तम पात्र हैं। प्रतिमाधारी श्रावक मध्यम पात्र होता है और जिसके कोई व्रत आदि नहीं होते है, ऐसे अविरत सम्यकदृष्टि श्रावक जघन्य पात्र कहलाते हैं।

आदरपूर्वक देना चाहिए दान जिनेन्द्र प्रभु की पूजा करने से श्रावक तीनों लोकों में पूज्यता को प्राप्त होता है। आदरपूर्वक दान देने से उत्तम सुखों की प्राप्ति होती है। भोजन आहार देने मात्र से ही श्रावक धन्य कहलाता है। कुपात्र को दिया गया दान का फल बंजर भूमि के समान है, जो फल रहित है। अपात्र को दिया गया दान दुःख देने वाला है। वर्षायोग समिति के प्रचार संयोजक नरेश जैन ने बताया कि प्रवचन सभा की शुरुआत में पारसमल, अमित कुमार, सुमित कुमार पाण्ड्या ने आचार्य विद्यासागर महाराज एवं आचार्य सुनील सागर महाराज के चित्र का अनावरण किया। दीप प्रज्ज्वलन एवं मुनि सुश्रुत सागर महाराज के पाद प्रक्षालन करने का लाभ भी पाण्ड्या परिवार को प्राप्त हुआ।

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