केकड़ी, 30 जून (आदित्य न्यूज नेटवर्क): दिगम्बर जैन मुनि सुश्रुत सागर महाराज ने कहा कि जिनेन्द्र भगवान के अभिषेक करने वाला जल सामान्य जल नहीं है। सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान व सम्यक चारित्र के कारण एवं मंत्रों के संयोग से अभिषेक का जल पवित्र गंधोदक बन जाता है। जिनेन्द्र भगवान का गंधोदक बड़ी ही श्रद्धा के साथ मस्तक एवं शरीर के प्रमुख उच्च स्थानों पर लगाना चाहिए। वे चंद्रप्रभु चैत्यालय में अष्टान्हिका महापर्व पर आयोजित सिद्धचक महामंडल विधान के दौरान प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार चंदन के सम्पर्क में आने वाली वस्तु कुछ समय के लिए सुगन्धित हो जाती है, उसी प्रकार जिनेन्द्र प्रभु के शरीर से स्पर्शित जल पवित्रता को प्राप्त हो जाता है। उन्होंने श्रीपाल मैना सुंदरी की कथा को बड़े ही सरल तरीक़े से समझाया। प्रवचन से पहले पायल पाण्ड्या ने मंगलाचरण गीत प्रस्तुत किया।
सिद्ध भगवान के गुणों की पूजा मुनि सुश्रुत सागर महाराज एवं क्षुल्लक सुकल्प सागर महाराज के सानिध्य में चल रहे सिद्धचक महामंडल विधान के दौरान पांचवीं पूजन में सिद्ध भगवान के 128 गुणों की पूजा की गई। श्रावक श्राविकाओं ने पंडित देवेन्द्र जैन के निर्देशन में मंडल विधान पर श्रीफल अर्घ्य समर्पित किए। शुरुआत में शांतिधारा की गई। प्रथम शांतिधारा का लाभ प्रमोद कुमार प्रेमचंद बाकलीवाल परिवार एवं दूसरी तरफ से शांतिधारा करने का लाभ प्रकाश चंद कैलाश चंद बज परिवार को मिला। विधान के दौरान संगीतकार पुष्पेन्द्र जैन ने सुमधुर भजनों की रसगंगा बहाई। शाम को महामण्डल विधान की महाआरती की गई। जिसका लाभ चांदमल जैन, शीतल कुमार जैन पारा वालों ने लिया।
