केकड़ी, 27 अगस्त (आदित्य न्यूज नेटवर्क): वीरा बालिका मण्डल के तत्वावधान में रविवार को चंद्रप्रभु चैत्यालय में मुनि सुश्रुत सागर महाराज एवं क्षुल्लक सुकल्प सागर महाराज के सानिध्य में “बेटियां कैसे करें… पिता के तिलक का सम्मान” विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया। वीरा बालिका मण्डल की अध्यक्ष पूर्वा टोंग्या एवं उपाध्यक्ष सीमा पाण्ड्या ने बताया कि बारह वर्ष से अधिक आयु की बेटियों एवं बालिकाओं का जीवन सुसंस्कारित कैसे बने, इसके लिए मुनि सुश्रुत सागर महाराज एवं क्षुल्लक सुकल्प सागर महाराज के मंगल आशीर्वाद एवं पावन सानिध्य में कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम का संचालन जयपुर से पधारी विख्यात प्रबुद्ध मंच संचालिका इन्द्रा बड़जात्या ने किया। वर्षायोग समिति के प्रवक्ता नरेश जैन ने बताया कि सेमिनार की शुरुआत बाल ब्र. शुभम भैया, बाल ब्र. विमल भैया, बाल ब्र. राकेश भैया, अरविंद भैया, बाल ब्र.आशा दीदी व बाल ब्र. माला दीदी ने चित्र अनावरण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ की। इस दौरान महावीर टोंग्या, चेतन रांवका, कमल ठोलिया आदि ने मुनिश्री का पाद प्रक्षालन किया।
केकड़ी: चन्द्रप्रभु जैन चैत्यालय में आयोजित सेमिनार को संबोधित करते मुनि सुश्रुत सागर महाराज।
बालिकाओं ने दी आकर्षक प्रस्तुतियां शुरुआत में नित्या, आराध्या रांटा, शान्वी, समीक्षा, अंशिका, स्मारिका, प्राची, माही, मानसी, परी, हर्षिता, ईशा आदि ने मंगलाचरण नृत्य प्रस्तुत किया। आर्तिका कटारिया ने ओजस्वी भाषा में “आखिर क्यों… नारी का सम्मान नहीं” विषय पर अपने विचार प्रस्तुत किए। सेन्ट्रल एकेडमी स्कूल की छात्राओं ने “भारत की बेटियां” पर डांस एवं श्री सुधासागर विद्याविहार स्कूल की छात्राओं ने “पिता की कहानी-बेटियों की जबानी” विषय पर काव्यपाठ किया। बीरा बालिका मण्डल की सदस्याओं “लव जिहाद” विषय पर लघुनाटिका का अतिसुन्दर मंचन किया। जिसमे कनिष्का, कविता, श्वेता, निकिता, परी, पर्युष, विनोदिनी, अंकिता, दिल्वी, योग्यांश आदि ने प्रमुख भूमिका निभाई। कार्यक्रम का निर्देशन विनोदिनी जैन, सोनल सोनी, कविता जैन एवं अंकिता जैन ने किया। इस दौरान सप्तम प्रतिमा धारी चंपा रांटा एवं मुन्नी देवी मित्तल का बहुमान किया गया।
माता पिता का कर्ज चुकाना मुश्किल मुनि सुश्रुत सागर महाराज ने सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा कि जीवन में सबसे बड़ा उपकार माता पिता का होता है। माता पिता का कर्ज चुकाना बेहद मुश्किल है। जिस तरह उन्होंने हमारा पालन-पोषण किया व अच्छा जीवन दिया। उसी प्रकार हमारा भी कर्तव्य बनता है कि हम भी माता-पिता की सेवा करें। उनके जीवन में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं आवें। माता पिता के दुःख दर्द में हमेशा सहयोगी बने। अपने कुल की मर्यादाओं को सुरक्षित रखें। पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के कारण हमारी पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक व राजनैतिक व्यवस्थाएं असुरक्षित हो चुकी है। उन्होंने कहा कि बालिकाओं को चाहिए कि वे अपने जनक माता पिता का पूर्णतया सम्मान करें। माता पिता हमेशा अपने जीवन के अनुभव के आधार से हमारे जीवन को उत्कृष्टता देना चाहते हैं। अतः माता पिता की आज्ञा का पूर्ण रूप से श्रद्धान सहित पालन करना चाहिए। माता पिता का विश्वास जीतने के लिए हर छोटी बड़ी बात उन्हें बताना चाहिए तथा आवश्यक होने पर उचित मार्गदर्शन प्राप्त करना चाहिए।
केकड़ी: चन्द्रप्रभु जैन चैत्यालय में वीरा बालिका मण्डल की ओर से आयोजित सेमिनार में मौजूद बालिकाएं।
प्रेम का भूत बाढ़ के समान मुनिश्री ने कहा कि प्रेम का भूत बाढ़ की तरह होता है। एकाएक आता है और निकल जाता है। उसमें मिलता-जुलता कुछ भी नहीं है। मुनि श्री ने कहा कि यदि पानी की तेजी को रोककर, बांधकर, बांध बनाकर गेट लगा दिए जाए, तो पानी को सुरक्षित रखा जा सकता है। उसी तरह अगर हमने अपनी वासना की तीव्रता को संयम, धैर्य, साहस, बुद्धि से रोक दिया तो हम भी सुरक्षित बच सकते हैं। बेटियां फूल की तरह कोमल होती है, लेकिन अपने शील की रक्षा करने में हीरे की तरह कठोर होती है। जिस बालिका ने अपनी शील की सुरक्षा नहीं की उसका सामाजिक, पारिवारिक जीवन सुखद नहीं रहता। उनके माता पिता को अपमान का घूंट पीना पड़ता है। उन्होंने सीता, लक्ष्मीबाई, अनंतमति, भगवान आदिनाथ की पुत्रियां ब्राह्मी-सुन्दरी, मैना सुंदरी, हनुमान की मां अंजना आदि के उदाहरणों से बताया कि किस तरह उन्होंने अपने अपने पिता के तिलक का सम्मान किया।