केकड़ी, 04 जून (आदित्य न्यूज नेटवर्क): उत्कृष्ट तप, साधना, अहिंसा, स्वावलम्बन व अपरिग्रह से भरे वैराग्य का प्रतीक माने जाने वाले दिगम्बर जैन संतों की कठिन चर्या का एक उदाहरण सोमवार को उस समय यहां दिगम्बर जैन चैत्यालय भवन में देखने को मिला, जब यहां कुछ दिनों से विराजमान श्रुत संवेगी मुनि आदित्य सागरज महाराज व मुनि अप्रमित सागर महाराज ने केश लोच किए। मुनियों ने केश लोचन की क्रिया ब्रह्म मुहूर्त में मुंह अंधेरे ही शुरू कर दी, जो भोर का उजाला फैलने तक सम्पन्न हुई। जैसे ही दिगंबर मुनियों ने अपने केशों को अपने हाथों से उखाड़ा तो उपस्थित जैन समुदाय भावविह्वल हो उठा।
निराहार रहकर किया केश लोच केश लोच करना जैन मुनियों की तपस्या का एक अनिवार्य हिस्सा है, इसमें वे घास-फूस की तरह अपने हाथों से सिर, मूंछ और दाढ़ी के बालों को उखाड़ते हैं। इस दिन दोनों मुनियों ने निराहार रहते हुए अपने कर्मों की विराधना करते हुए वैराग्य की भावना से केश लोचन किया। केश लोच करते समय जैन मुनियों ने कंडे की राख का उपयोग किया। बताया गया कि ऐसा जैन मुनि इसलिए करते हैं, जिससे कि केश लोच करते समय पसीने के कारण हाथ न फिसले और यदि रक्त निकले, तो उसे रोका जा सके।
सर्वोत्तम आदर्श है जैन संतों की कठिन साधना उल्लेखनीय है कि बाइस परिषहों को सहते हुए दिगम्बर जैन संतों की कठिन साधना सारे संसार में सन्यास धर्म का सर्वोत्तम आदर्श मानी जाती है। अपनी घोर तपस्या एवं साधना के बल पर जनमानस को अचंभित करने वाले दिगम्बर जैन मुनि दिगंबर रहकर शीत, ग्रीष्म व वर्षा ऋतुओं के तीव्र प्रकोप को बिना किसी आश्रय, मजबूत मनोबल के साथ सहन करते हैं।