केकड़ी, 06 जून (आदित्य न्यूज नेटवर्क): श्रुत संवेगी मुनि आदित्य सागर महाराज ने कहा कि क्रोध के समय हमारी समझ कुंद हो जाती है। हमें कुछ भी होश नहीं रहता। क्रोध हमारी परस्पर प्रीति को खत्म कर देता है। हमें विवेकवान रहते हुए अपनी कषायों को दबाकर रखना चाहिए। वे गुरुवार को दिगम्बर जैन चैत्यालय भवन में ग्रीष्मकालीन प्रवचनमाला के अंतर्गत मेरी भावना काव्य की व्याख्या करते हुए बोल रहे थे। उन्होंने मेरी भावना काव्य की सूक्ति ‘अहंकार का भाव न रक्खूं, नहीं किसी पर क्रोध करूं, देख दूसरों की बढ़ती को, कभी न ईर्ष्या भाव धरूं’ का उल्लेख करते हुए कहा कि जो दूसरों पर क्रोध करते हैं, वे जेल में पहुंच जाते हैं तथा जो खुद पर क्रोध करते हैं वह कर्मों की जेल में फंस जाते हैं।
सदैव सजग व सावधान रहना चाहिए उन्होंने माचिस की तीली का उदाहरण देते हुए कहा कि माचिस की तीली के पास भी सिर होता है, पर दिमाग नहीं। वह जरा सा घिसते ही गर्म हो जाती है और जल जाती है। हमें माचिस की तीली के समान नहीं बनना चाहिए। हमें दूसरों की उन्नति देखकर ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए, बल्कि उनकी प्रशंसा व अनुमोदना करनी चाहिए, इससे उसी फल की प्राप्ति निश्चित रूप से हमें भी होने लगती है। हमें सदैव सजग व सावधान रहना चाहिए, ताकि अहंकार व क्रोध की आग छूने भी न पाएं। जिस देश के लोग जागरुक होते हैं, वह देश कभी भी नष्ट नहीं हो सकता। जागरूक व्यक्ति की कथनी व करनी में भेद मिट जाता है और खुद पर विश्वास जन्म लेने लगता है, इससे चित्त स्थिर होने लगता है और स्थिर चित्त अपार शक्ति से भर जाता है।

देव शास्त्र गुरु के समीप जाने से होती है शांति की प्राप्ति धर्मसभा में प्रवचन करते हुए मुनि समत्व सागर महाराज ने कहा कि चित्त की चंचलता को विराम देना है तो चिंतन की धारा पर नियंत्रण करना होगा। जैसे बाहर हैं, वैसे अंदर भी में हो जाए तो अपूर्व शांति प्राप्त होगी। चमकते चेहरे को चित्त से मिला लें तो सोने पर सुहागा होगा। जिस प्रकार दौड़ने की क्रिया में पैरों के साथ-साथ हाथ भी सहयोगी है, वैसे ही ध्यान करने में सबसे पहले आंख बंद करते हैं, क्योंकि इससे आंखों की चंचलता को रोकते हुए बाहरी प्रवृत्ति को विराम दिया जाता है। जैसा हमारा चित्त होगा, चरित्र भी वैसा ही होगा। जब हमारे जीवन में अशांति हो तो हमें देव शास्त्र गुरु के समीप चले जाना चाहिए, इससे शांति प्राप्त होती है।
मोबाइल के लगातार प्रयोग से चित्त बनता अस्थिर उन्होंने कहा कि जो फक्कड़ दिखते हैं, वही योगी सबसे बड़े अमीर हैं, क्योंकि उनका चित्त स्थिर है। जैन दिगंबर योगी का शरीर ही चित्त की निर्मलता को बतलाता है, इसलिए दिगंबरत्व के आगे संसार के सभी उपमाएं फीकी है। भोगों के बीच में जिसे भगवान की याद आ जाए, वही भगवान बन सकता है। उन्होंने चित्त की चंचलता के लिए बड़ा कारण वर्तमान समय में मोबाइल फोन को बताया। उन्होंने मोबाइल फोन की लत में फंसे लोगों को आगाह करते हुए कहा कि मोबाइल का लगातार प्रयोग चित्त को चंचल करता है और चंचल चित्त हजार तरह के विकार पैदा करता है। यदि हमें अपने चित्त को स्थिर करना है, तो मोबाइल का उपयोग विवेक पूर्ण ढंग से करना चाहिए।

जिन आगम सेवा संघ के कार्यकर्ताओं ने किया पाद प्रक्षालन धर्मसभा के प्रारंभ में कांतादेवी, चेतन कुमार, अनिल कुमार, अंकुश व निकुंज रांवका परिवार ने आचार्य विशुद्ध सागर महाराज के चित्र का अनावरण कर दीप प्रज्वलन किया तथा जिन आगम सेवा संघ के युवा कार्यकर्ताओं ने मुनि संघ के पाद प्रक्षालन कर शास्त्र भेंट किए। धर्मसभा के दौरान भोपाल, भीलवाड़ा, जयपुर, शाहपुरा, कोटा, मालपुरा व जूनियां से आए श्रावकों ने मुनिसंघ के समक्ष श्रीफल अर्पित किए।