Site icon Aditya News Network – Kekri News

किसी के दोष न देखें, बल्कि गुणों को करें आत्मसात… माता—पिता सबसे बड़े गुरु व शुभचिंतक-मुनि आदित्य सागर महाराज

केकड़ी: धर्मसभा में मुनिसंघ के पाद प्रक्षालन करते हुए श्रेष्ठी परिवार।

केकड़ी, 10 जून (आदित्य न्यूज नेटवर्क): श्रुत संवेगी दिगम्बर जैन मुनि आदित्य सागर महाराज ने कहा कि व्यक्ति के दोषों को न देखकर उसके गुणों की प्रशंसा करनी चाहिए व उसके गुणों को अपने जीवन में अपनाने का प्रयास करना चाहिए। जो व्यक्ति को धर्म के मार्ग पर ले जाएं एवं श्रेष्ठ गुणों के धारक हो, ऐसे व्यक्तियों की सेवा करनी चाहिए। ऐसा करने से वे गुण हमारे भीतर भी उत्पन्न होने लगते हैं। वे ग्रीष्मकालीन प्रवचनमाला के दौरान सोमवार को दिगम्बर जैन चैत्यालय भवन में प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जीवन में सबसे बड़ा गुरु व शुभचिंतक व्यक्ति के माता पिता होते हैं। हमें प्रतिदिन प्रातः उठते ही माता पिता के चरण स्पर्श करने चाहिए।

कोई भी हो सकता है गुणवान उन्होंने मेरी भावना काव्य की एक सूक्ति ‘गुणीजनों को देख हृदय में, मेरे प्रेम उमड़ आवे, बने जहां तक उनकी सेवा करके यह मन सुख पावे, होऊं नहीं कृतघ्न कभी में, द्रोह न मेरे उर आवे, गुण ग्रहण का भाव रहे नित दृष्टि न दोषों पर जावे’ की व्याख्या करते हुए कहा कि गुणवान व्यक्ति को देखकर हृदय में सदैव प्रेम उमड़ना चाहिए। जरूरी नहीं कि कोई साधू या बड़ा व्यक्ति ही गुणवान हो, बल्कि छोटा व्यक्ति भी गुणवान हो सकता है। हमें शांति चाहिए तो वह प्रेम से ही प्राप्त हो सकती है।

केकड़ी: धर्मसभा में उपस्थित महिला-पुरुष।

सेवा करने से होती है पुण्य की प्राप्ति उन्होंने कहा कि हमारे किसी कार्य से किसी को खुशी मिलती है, तो बदले में हमें भी कई गुना मानसिक शांति व संतोष का सुख प्राप्त होता है। सेवा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है एवं मरण समाधिपूर्वक होता है। जिनका हम पर उपकार होता है, उनके प्रति कभी भी कृतघ्न भाव नहीं रखने चाहिए। उपकारी के प्रति मन में कभी भी विद्रोह का भाव नहीं आना चाहिए। उन्होनें कहा कि मनुष्य की कीमत इस बात से नहीं है कि अभी वह क्या है, बल्कि इस बात से है कि वह अपने आपको क्या बना सकता है। ये कभी न सोचें कि आपकी कीमत नहीं है, हमेशा यही सोचे कि आपसे कीमती कोई है ही नहीं।

विचारधारा से होता व्यवहार का निर्धारण धर्मसभा में संघस्थ मुनि सहज सागर महाराज ने प्रवचन करते हुए कहा कि जिस व्यक्ति का हृदय व विचार विशाल हो, वही व्यक्ति श्रेष्ठ है। व्यक्ति अपने विचारधारा से ही अपने व्यवहार को निर्धारित करता है। उससे यदि कोई गलती हो तो उसे स्वीकार करना आना चाहिए। जो अपनी आंखों से देखते हैं और कानों से सुनते हैं, उसे यदि अंतरंग से देखें और सुने तो श्रेष्ठता को प्राप्त कर सकते हैं। धर्मसभा के प्रारम्भ में कैलाशचंद, प्रकाशचंद, सुशील, संदीप पाटनी परिवार ने आचार्य श्री विशुद्धसागर महाराज के चित्र का अनावरण कर दीप प्रज्वलन किया तथा मुनि आदित्य सागर महाराज व मुनिसंघ के पाद प्रक्षालन कर उन्हें शास्त्र भेंट किए।

Exit mobile version