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जैन धर्म राग द्वेष का नहीं अपितु वीतरागता का, मोह का त्याग करने से होगी केवल ज्ञान की प्राप्ति

केकड़ी: धर्मसभा में प्रवचन करते आचार्य सुन्दर सागर महाराज, साथ में है संघस्थ मुनि।

केकड़ी, 18 जून (आदित्य न्यूज नेटवर्क): संत शिरोमणि आचार्य सन्मति सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य आचार्य सुन्दर सागर महाराज ने कहा कि मानव संसार में गिने चुने लोगों से राग द्वेष रखता है, असंख्य लोगों को वो जानता ही नहीं है। उनसे कोई लेना देना नहीं होता है। किसी को देखकर हर्ष हो वो राग है, किसी को देखकर ईर्ष्या हो वो द्वेष है। वे ग्रीष्मकालीन प्रवास के दौरान प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि राग द्वेष ही मानव के पतन का कारण है। राग को द्वेष में बदलने में पल भर का समय लगता है। जैन धर्म राग द्वेष का नहीं अपितु वीतरागता का है। मोह का त्याग करने से ही केवल ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है।

श्रद्धा व भक्ति पर निर्भर है सफलता उन्होंने कहा कि हम अच्छा या शुभ कार्य करने से पहले भगवान या गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करते है, फिर भी कार्य अच्छा ना हो तो अपनी किस्मत को दोष देते है। सच तो यह है कि भगवान व गुरु तो सभी को आशीर्वाद देते है, परंतु सफलता सभी को नहीं मिलती है। व्यक्ति की सफलता श्रद्धा व भक्ति पर निर्भर होती है। मीडिया प्रभारी पारस जैन ने बताया कि धर्मसभा की शुरुआत में देवालाल जैन, प्यारे लाल जैन, कैलाश चंद जैन व महावीर प्रसाद जैन ने भगवान महावीर के चित्र का अनावरण व दीप प्रज्जवल किया। भागचंद, ज्ञानचंद, जैन कुमार, विनय कुमार भगत ने आचार्यश्री के पाद प्रक्षालन किए। अर्हम जैन ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया। संचालन भागचंद जैन ने किया।

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