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नवरात्रा स्पेशल: सौ साल पुराने मूल स्वरूप में लौटी ब्रह्माणी माता की प्रतिमा, दर्शनों के लिए उमड़ रहा भक्तों का सैलाब

केकड़ी: ब्रह्माणी माता की प्रतिमा का मूल स्वरूप।

केकड़ी, 8 अक्टूबर (आदित्य न्यूज नेटवर्क): नवरात्रि के मौके पर इन दिनों देशभर में लोग भक्ति के साथ मां आदिशक्ति की उपासना में लीन है। नवरात्र स्थापना के साथ ही जगह-जगह माता के मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है तथा मंदिरों में विभिन्न धार्मिक आयोजन किए जा रहे हैं। माता के दर्शन के लिए यूं तो हरेक जगह श्रद्धालुओं की भीड़ दिखाई दे रही है, लेकिन केकड़ी जिले के बघेरा गांव में स्थित ऐतिहासिक ब्रह्माणी माता मंदिर में इस बार नवरात्रा कुछ खास बन गए हैं। यहां हाल ही में एक ऐसा वाकया पेश आया, जिसने माता ब्रह्माणी के दर्शनों को खास बना दिया है। जिसके चलते दूर दूर से श्रद्धालु यहां माता के दर्शन के लिए उमड़ रहे हैं। आइए, जानते हैं कि 100 साल बाद इस मंदिर में ऐसा क्या हुआ, जिससे इस बार यहां नवरात्रि खास बन गए हैं।

देशभर की 108 शक्तिपीठों में शामिल है मंदिर केकड़ी जिले के बघेरा गांव में स्थित ब्रह्माणी माता का ऐतिहासिक मंदिर इस बार एक विशेष कारण से नवरात्र में लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। डाई नदी के किनारे स्थित बघेरा का यह मंदिर देशभर की 108 शक्तिपीठों में शामिल है। यहां पर मंदिर विकास समिति की ओर से इस बार माता के लिए चांदी की नई पोशाक बनाने का फैसला किया गया। समिति के बुलावे पर करीब एक माह पूर्व माता की नई पोशाक बनाने के लिए पोशाक निर्माता स्वर्णकार सुरेश सोनी जब मंदिर पहुंचे और नाप लेने की तैयारी करने लगे, उसी समय माता को जो चोला और कामी बरसों से चढ़ाई जाती रही है, वह अपने आप खिरकर गिरने लग गई। सारी कामी व चोला हटते ही माता का एक नया और अनुपम चतुर्भुज स्वरूप सामने आ गया। माता का नया रूप सामने आते ही पोशाक बनाने का निर्णय स्थगित कर दिया गया। मान्यता है कि हर 100 साल में माता अपने मूल स्वरूप में लौटती है।

केकड़ी: ब्रह्माणी माता की प्रतिमा का प्राचीन स्वरूप।

चतुर्भुजधारी स्वरूप के हुए दर्शन गांव के सबसे उम्रदराज लोगों सहित यहां आने वाले सभी श्रद्धालुओं का कहना है कि इस बार माता के जिस चतुर्भुजधारी स्वरूप के दर्शन हो रहे हैं, वह उन्होंने अपने जीवन में पहली बार किए हैं। क्योंकि इससे पहले अभी तक उन्हें सिर्फ माता का चेहरा ही दिखाई देता था। इसके पीछे कारण यह बताया गया कि यहां सेवा पूजा करने वालों की ओर से माता को चोला चढ़ाने का सिलसिला बरसों से बरकरार है, जिसके चलते धीरे धीरे माता का मूल स्वरूप ढकता चला गया और सिर्फ उनका चेहरा ही दिखता रह गया।

दूर दूर से आ रहे भक्त पुजारी नंदकिशोर पाठक ने बताया कि करीब 100 साल के बाद पहली बार ब्रह्माणी माता के चतुर्भुजधारी मूल स्वरूप के दर्शन के चलते इस बार नवरात्रा में दूर दूर से भक्तगण दर्शनों के लिए यहां पहुंच रहे हैं। उन्होंने बताया कि प्राचीन संस्कृति के साथ आध्यात्मिक, ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले गांव बघेरा में स्थित इस मंदिर में पुष्कर के ब्राह्मणों ने ब्रह्माणी माता की प्रतिमा स्थापित की थी।

केकड़ी: ब्रह्माणी माता मंदिर का आकर्षक मुख्यद्वार।

भक्तों की मनोकामना होती है पूरी बघेरा में ब्रह्माणी माता का यह मंदिर स्टेट हाईवे 116 पर काली पहाड़ी की तलहटी में स्थित है। माता के दर्शनों के लिए आने वाले श्रद्धालु मनोकामना लेकर दूर दूर से दंडवत और पदयात्रा करते हुए यहां पहुंचते हैं और मनोकामना पूरी होने के बाद उनकी ओर से यहां भजन संध्या, सवामणी आदि अनेक धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। माताजी की चौखट पर सैकड़ों किलोमीटर दूर से चलकर आने वाले भक्तों में ज्यादातर वह है, जिनके कष्टों का निवारण यहां आकर हाजिरी लगाने से हुआ है। इसी के चलते देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां दर्शनों के लिए आते हैं। यहां की मान्यता दूर दूर तक फैली हुई है, जिससे यहां अन्य राज्यों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु मत्था टेकने आते हैं।

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