केकड़ी। यहां घण्टाघर के समीप स्थित आदिनाथ मंदिर में विराजित आर्यिका मुक्तिश्री माताजी का मंगलवार सुबह समाधि मरण हो गया। दिगम्बर जैन आचार्य इन्द्रनन्दी महाराज की सुशिष्या आर्यिका मुक्तिश्री माताजी ने सुबह मंदिर में शांतिधारा के दर्शन किए। इसके बाद उनकी अचानक तबियत खराब हो गई। साढ़े आठ बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। दोपहर सवा बजे मुक्तिश्री माताजी की महाप्रयाण यात्रा निकाली गई। जो जूनियां गेट, जयपुर रोड, कृषि उपज मण्डी होते हुए बघेरा रोड स्थित पांडुक शिला पहुंची। जहां बालाचार्य निपूर्णनन्दी महाराज, मुनि निर्भयनन्दी महाराज, आर्यिका कमलश्री माताजी समेत समाज के हजारों महिला—पुरुषों की मौजूदगी में विधिपूर्वक अंतिम संस्कार किया गया। समाज के लोगों के अनुसार पहली बार केकड़ी में किसी जैन आर्यिका का समाधि मरण हुआ है।
गूंजता रहा णमोकार महामंत्र का जाप महाप्रयाण यात्रा से पहले कस्बेवासियों ने आदिनाथ मंदिर में माताजी की पार्थिव देह के दर्शन किए। माताजी की पार्थिव देह को बैकुण्ठी में रखने तक मंदिर परिसर में णमोकार महामंत्र का जाप गूंजता रहा। दोपहर सवा बजे उनकी महाप्रयाण यात्रा शुरु हुई। बैकुण्ठी में विराजित आर्यिका मुक्तिश्री माताजी की एक झलक पाने के लिए श्रावक—श्राविकाओं में मानो होड़ मच गई। कस्बे के सभी धर्मो के लोग आर्यिकाश्री के दर्शन को आतुर दिखे। समाज के लोग आर्यिका मुक्तिश्री के जयकारे लगाते चल रहे थे। इस दौराना युवा वर्ग में जोरदार जोश नजर आया। महाप्रयाण यात्रा पर जगह—जगह पुष्पवर्षा की गई। जयकारों के बीच उड़ती गुलाल ने माहौल को धर्ममय बना दिया। महाप्रयाण यात्रा में शामिल होने के लिए बच्चों से लेकर 85—90 साल के बुजुर्ग तक लालायित नजर आए। महाप्रयाण यात्रा के दौरान जैन समाज के अधिकतर प्रतिष्ठान बंद रहे।
श्रद्धापूर्वक दी अंतिम विदाई कस्बे के विभिन्न मार्गों से होते हुए महाप्रयाण यात्रा बघेरा रोड स्थित पाण्डुक शिला पहुंची। जहां बालाचार्य निपूर्णनन्दी महाराज, मुनि निर्भयनन्दी महाराज, आर्यिका कमलश्री माताजी आदि ने पार्थिव देह के अंतिम दर्शन किए। बोली लगाने वाले परिवार ने शांतिधारा की। इसके बाद माताजी के सांसारिक परिजन गुमानमल, राजकुमार, नरेश कुमार, विजय कुमार, प्रदीप कुमार, चिरंजीलाल, देवेन्द्र कुमार चौधरी परिवार भीलवाड़ा एवं बोलीदाताओं ने उन्हें मुखाग्नि दी। हजारों श्रावक—श्राविकाओं ने माताजी को श्रद्धापूर्वक अंतिम विदाई दी। इस दौरान केकड़ी, सावर, जूनियां, बघेरा, धून्धरी, मेहरूकलां, रामथला, नासिरदा, देवगांव समेत कई गांवों से आए महिला—पुरुष मौजूद रहे। समाज के धनेश जैन ने बताया कि अंतिम संस्कार स्थल पर माताजी की समाधि बनाई जाएगी।
धून्धरी से विहार कर पहुंचे केकड़ी आर्यिका मुक्तिश्री माताजी के समाधि मरण का समाचार मिलते ही धून्धरी में विराजित बालाचार्य निपूर्णनन्दी महाराज व मुनि निर्भयनन्दी महाराज केकड़ी के लिए रवाना हो गए। वे सीधे बघेरा रोड स्थित पाण्डुक शिला पहुंचे। जहां महाराजश्री के निर्देशन में अंतिम संस्कार की विविध धार्मिक क्रियाएं हुई।
जीवन परिचय मुक्तिश्री माताजी का जन्म 1938 में भीलवाड़ा जिले के गुलाबपुरा कस्बे में मिश्रीलालजी के यहां हुआ था। उनका गृहस्थ नाम विमला देवी था। उनका विवाह भीलवाड़ा निवासी भंवरलाल चौधरी से हुआ था। गृहस्थ जीवन के दौरान धार्मिक संस्कारों में पले बढ़े होने एवं वैवाहिक परिवार भी बेहद धार्मिक होने के कारण वैराग्य का बीज हृदय में पलता रहा। इसी के परिणाम स्वरूप 14 जुलाई 1995 को टोंक जिले के निवाई कस्बे में आचार्य 108 पदमनन्दी महाराज से आर्यिका दीक्षा ग्रहण कर अपना सर्वस्व जैन समाज की सेवा में समर्पित कर दिया। सांसारिक जीवन में इनके चार पुत्र है। जिनके नाम विजय चौधरी, प्रदीप चौधरी, चिरंजी चौधरी व देवेन्द्र चौधरी है।