केकड़ी, 01 जून (आदित्य न्यूज नेटवर्क): श्रुत संवेगी दिगम्बर जैन मुनि आदित्य सागर महाराज ने कहा कि जीवन में दुख-दर्द हमेशा रहने वाले हैं, यही संसार का स्वरूप है, संसार का स्वभाव है। हमें प्रतिकूलताओं को सहज व समतापूर्वक ग्रहण करते हुए जीने की आदत डालनी चाहिए। संसार-वृत्ति के त्याग के बिना सच्चा सुख नहीं मिलता। जो बात हमें अपने स्वयं के लिए खराब लगती है, वही व्यवहार हमें दूसरों के लिए उपयोग में नहीं लेना चाहिए। वे ग्रीष्मकालीन प्रवचनमाला के तहत शनिवार को दिगम्बर जैन चैत्यालय भवन में प्रवचन कर रहे थे।
समय का सदुपयोग करना जरूरी मुनि आदित्य सागर महाराज ने कहा कि मनुष्य जन्म धर्म करने के लिए श्रेष्ठ जीवन है। ऐसे में सत्कार्य ना करने वाले मूर्ख हैं। समय अनमोल है, अतः इसका सदुपयोग करना चाहिए। उन्होंने कहा कि माता-पिता व गुरू की छत्रछाया बहुत पुण्य से मिलती है। वे सदैव भला सोचते हैं। हमें कषायों की मन्दता रखते हुए, पापों का एकदेश त्याग कर, गृहस्थावस्था में अणुव्रतों को अवश्य धारण करना चाहिए और भविष्य में महाव्रतों को धारण कर शुद्धोपयोग की भावना रखनी चाहिए। उन्होनें कहा कि साधुओं की वैयावृत्ति करना व उनकी सेवा-स्थिति करना तुरंत फलदाई होता है। इससे संसार के सभी दुखों का नाश होता है।
निंदा से होती दुखों की प्राप्ति मुनि आदित्य सागर महाराज ने कहा कि साधुओं की निंदा करना भी तुरंत फलित होता है और दुखों का कारण बनता है। यह वैयावृत्य तप का हृदय-प्राण है। समयोचित सेवा करना ही वैयावृत्य है। गुरुओं के सानिध्य से व उनकी स्तुति करने से सभी दुख दूर हो जाते हैं। इससे कीर्ति बढ़ती है और नरक गति नहीं मिलती, बल्कि उच्च गौत्र की प्राप्ति होती है। प्रभु एवं गुरुओं की पूजा करने से एक दिन आपकी पूजा होगी। उनके समागम से कर्मों की निर्जरा व मोक्ष की प्राप्ति होती है। हमें प्रातःकाल चौबीस तीर्थंकर भगवानों का स्मरण करना चाहिए, इससे पूरा दिन मंगलमय होता है।
बताई गंधोदक की महिमा मुनि आदित्य सागर महाराज ने गंधोदक की महिमा बताते हुए कहा कि जो निर्मल है, निर्मल करने वाले हैं, पवित्र है व पाप का नाश करने वाले हैं, ऐसे प्रभु का गंधोदक अष्टकर्म को नाश करने वाला है, गंधोदक लेने के पश्चात गंधोदक को नमस्कार करना चाहिए। परम ऋषि स्वस्ति मंगल का पाठ करने से जीवन से अमंगल दूर चला जाता है। प्रारम्भ में आचार्य विशुद्ध सागर महाराज का चित्र अनावरण व दीप प्रज्ज्वलन दानमल नरेंद्र गदिया परिवार ने किया तथा पाद प्रक्षालन अशोककुमार ज्ञानचंद सिंघल परिवार ने किया। सभा का संचालन महावीर टोंग्या ने किया।